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समाज

February 23, 2013

"प्यार कहाँ से लाऊँ?"


मैंने ये पोस्ट डॉ० रूपचन्द्र शास्त्री जी के ब्लॉग पर पढ़ी थी जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हॅू !

आँखों का सागर है रोता,
अब मनुहार कहाँ से लाऊँ
सूख गया भावों का सोता
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?

पैरों से तुमने कुचले थे,
जब उपवन में सुमन खिले थे,
हाथों में है फूटा लोटा,
अब जलधार कहाँ से लाऊँ?
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?

छल की गागर में छल ही छल,
रस्सी में केवल बल ही बल,
हमदर्दी का पहन मुखौटा,
जग को बातों से भरमाऊँ।
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?

जो बोया वो काट रहे हैं,
तलुए उसके चाट रहे हैं,
अपना सिक्का निकला खोटा,
अब कैसे मैं हाथ मिलाऊँ?
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?

February 5, 2013

दहेज

मैंने ये लाइनें एक किताब में पढ़ी थी जो आज मैं आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ ........

पैसे की हवस ने जगाया, मन मे जब असन्तोष,
उचित – अनुचित का रहा ना मानव को तब होश।
बाजार में फल स्वरूप लड़के लगे बिकने,
लड़कों का मूल्य लगा दिनों दिन बढ़ने॥

कीमत को सुनकर लड़की का बाप घबराया,
देख दशा उसकी वर का पिता मुस्कुराया।
इस बीच नियति ने कुछ खेल ऐसे दिखाएँ,
वर के पिता को दिन में तारे नजर आए॥

चेहरे का सफ़ेद रंग लिए पुत्र तभी आया,
साथ में था अपने जो एक पत्र लाया।
पढ़ पढ़ कर आने लगी उसको मूर्छा,
कन्या के पिता ने कारण इसका पूछा॥

बेटे ने कहा बहन का रिश्ता गया छुट,
चाहते है लड़के वाले लेना हमको लूट।
लड़की के बाप को मिल गया सुनहरा अवसर,
बोला एक नहीं सभी है रक्त चूसने को तत्पर॥

कहकर इतनी बात लगा वो वहाँ से जाने,
बेटी के लिए अन्यत्र भाग्य आजमाने।
पर लड़के का पिता अब समझ चुका था,
अपने बुने जाल में स्वयं उलझ चुका था॥

दहेज की जिस अग्नि को था उसने स्वयं लगाया।
उसी अग्नि में था उसने सुख चैन को जलाया॥

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